Bhagavad Geeta Quote

Bhagavad Geeta Quote

Monday, April 9, 2018

बिना प्यार किये, प्यार पे लिखना





बिना प्यार किये, प्यार पे लिखना
बिना शराब पिए, शराब पे लिखना
बिना तुझे देखे, शबाब पे लिखना
मुझे ऐसे ही लिखने में अच्छा लगता है
बिना तुझे देखे, बिना तुझे मिले
गर तुझसे मिला या तुझे पा लिया तो ये लिखना छूट जायगा
और जो हर रोज़ तुझे ढूंढ़ने के बहाने इतने सारे शब्द ढूंढ लेता हूँ
वो शब्दों को देने वाला दुकानदार रूठ जायगा
में कभी कभी ढूंढ लेता हूँ तुजे, मंच के सामने से आती धुंदली सी लाइट में
जब वो रौशनी आँखों पर पड़ती है और सामने की चौथी दिवार काली हो जाती है
उस वक़्त कुछ क्षणों के लिए तुझे ढूंढ लेता हूँ
तो कभी ढूंढ लेता हूँ, घर पे माँ की उस चिंता में जो जो मेरे घर जाने तक नहीं सोती
कभी कभी तू मुझे वहां भी मिल जाती है, जहाँ मेरे कमरे में एक भगत सिंह की तस्वीर है
और हाँ कभी कभी तू वहां भी मिलती है, जब एक बच्चे हो हँसते देखता हूँ, बिना किसी वजह
क्योकि में भी तो तुझे यूही ढूंढ रहा हूँ बिना किसी वजह
फिर तो में भी बच्चा हुआ न, और हाँ शायद में बच्चा हूँ, इसलिए लिए आज तक बचा हूँ
तो इस बचे हुए मैं से मै हर रोज़ तेरा पता पूछता हूँ,
और जहाँ भी सुकून मिलता है, वहीं तुझे पा लेता हूँ
पर सिर्फ कुछ पल के लिए,बाकी पल तुझे ढूंढ़ने में लगते हैं न
और सच पूछो तो तुझे पाने से ज़ायदा ख़ुशी तुझे ढूंढ़ने में मिलती है
अभी में यहाँ खड़ा होकर इन सब के सामने,
इन दस बारह लिइनो में तुम्हें ढूढ़ने की कोशिश कर रहा हूँ
और शायद ये भी इन्ही लिइनो में से तुम्हें ढूंढेंगे कभी न कभी
क्युकी इनका और मेरा और इस दुनिया में सबका एक ही तू है
सुकून 


Saturday, May 14, 2016

मेरी अमीरी का अंदाजा लगा लो



- मेरी अमीरी का अंदाजा इस बात से लगा लो
मेरी सुबह की शुरुवात दादा जी के हुक्के की गुड गुड से होती है

- वो करोडो कमाने के बाद, नींद की दवाईयों से रात काटते हैं
हमे नीद ही दादा जी की चारपाई पर आती है

- वो सुनते है यो यो हनी सिंह और पढते है चेतन भगत को

हमें तो दादा जी की सुनाई वो भगत सिहं की कहानी याद आती है

- सुना कहीं भाई भाई लड रहे हैं जमीन जायदात पर
हमे अपने सर पर दादा जी का हाथ ही सारी जायदात नजर आती है

- और जब हताश हो जाता हुँ जिंदगी से तो बस एक नजर दादा जी की तरफ जाती है
और ना जाने कहां से जिंदगी जीने की चाह फिर से लौट आती है

चौधरी सूरत सिंह सेजवाल
उम्र 96 yrs

Saturday, February 7, 2015

"कुछ चीज़े हमेशा अधूरी रह जाती है या फिर कुछ लोग उन्हें पूरा करने से डरते है"

आज मुझे अपने ही कहे हुए शब्द याद आ रहे हैं "कुछ चीज़े हमेशा अधूरी रह जाती है या फिर कुछ लोग उन्हें पूरा करने से डरते है" बड़े जोश से मैंने 3 महीने पहले ही विपश्यना Meditation का पंजीकरण करा लिया जो की 10 दिन की साधना थी Meditation के ज़रिये अपने शरीर को समझने की। सब दोस्तों को भी बताया आखिर, वो दिन भी आ गया जब मुझे वहां जाना था 4th Feb. 2015. वहां के सब नियम कानून पढ़े और बड़ी जोश में कहा की में तयार हूँ. और बाहरी दुनिया से पूरी तरह कट कर अंदर दाखिल हुआ. और उसी दिन रात 8 बजे अपनी साधना आरम्भ की.. जैसे जैसे दिन बीतते गए वहां का अकेलापन मुझे काटने लगा, फिर जाना की शायद सही जगह पर गलत इंसान आ गया, जैसे तैसे करके 3 दिन पूरे किये और वहां से एक हारे हुए सिपाही की तरह पीठ दिखा कर वापस आ गया. लोगों की नज़रों में मैं हार गया था पर मेरी सबसे बड़ी जीत ये रही की मैंने वो हार स्वीकार की और एक कदम और आगे बढ़ा।


Sunday, November 9, 2014

ग़लत है

कल काफी दिनों बाद दुःख हुआ ,आंसू निकले, जो ग़लत है 
कल फिर मुझे इंसानो जैसा महसूस हुआ , जो ग़लत है
वाही अपने अस्तित्व की तलाश में दूसरों पर निर्भर रहना, जो ग़लत है
मोह, माया,राग,विराग,ईर्ष्या,क्रोध,कलेश में खुद को ही भूल जाना,जो ग़लत है
एक बार खुद से पूछ कर तो देखो की चाहते क्या हो ।
फिर पता चलेगा की आज तक जो भी किया वो गलत है।
कुछ पाने की इच्छा में अपना सब कुछ गवा देना, जो ग़लत है
एक बार अपना सब कुछ त्याग कर तो देखो।
पता चलेगा की आज तक जो भी पाया ,वो ग़लत है।
हम कर्म करने से पहले पाने की इच्छा रखते हैं
कुछ पाने के लिए सब कुछ करते हैं, जो ग़लत है



Monday, September 3, 2012

गिरना गलत नहीं है गिर का न उठना गलत है

जब सोचा कुछ नया करने को सिर्फ 1 धुंदली सी मंजिल थी जिस तक जाने के लिए न कोई रास्ता था न कोई प्रेणना. एक दिन देखा कुछ काले कपड़ो में नौजवानों को चिल्लाते हुए पहले थोड़ी मुस्करात आई मेरे चहरे पर फिर  धीरे धीरे एक आवाज़ मेरे कानों को चीरती हुयी निकली जब देखा उस और तो उस्सी आवाज़ में वो आक्रोश वो गुस्सा भी था जो शायेद हम कभी अपनी जिंदगी में लाने से डरते है और फिर उस्सी आवाज़ के साथ नाटक का मध्यांतर हुआ..कुछ लोगों ने सोचा की नाटक यहीं खत्म हो गया पर असली नाटक वहा से शुरू हुआ था...उस दिन उस आवाज़ ने उस गुस्से ने मुझे इतनी अन्दर तक तोड़ दिया की उस्सी आवाज़ को सुनने के लिए में हर रोज़ पूरी दिल्ली में भटकता, कुछ दोस्त मुझे पागल कहते थे तो कुछ सनकी...फिर आखिरकार मैंने सोच ही लिया उस संस्था के साथ जुड़ने का जहाँ से मुझे अपनी मंजिल थोड़ी साफ़ होती दिख रही थी....और रास्ते पर चलने के लिए एक प्रेणना भी मिल गयी जिसके सहारे में हर रोज़ अपनी एक नयी शुरुवात करता. आज उस्सी रास्ते पर चलते चलते १ साल हो गया और साथ ही धुंदली मंजिल का बादल थोडा थोडा साफ़ होता दिख रहा था इस एक साल में काफी बार गिरा फिर उठा...और जाना की "गिरना गलत नहीं है गिर का न उठना गलत है" और भी काफी कुछ सिखाया उस गुरु ने जो शायेद शब्दों में ब्यान नहीं हो सकता...पर मेरे व्यक्तित्व में साफ़ झलकता है....और "अस्मिता" का शुक्ष्म मतलब जाना "पहचान" जो हम सब एक समय पर आकर कहीं न कहीं खोने से लगते हैं उसे बनाने में मेरा साथ दिया...

Friday, May 18, 2012

Asmita Theatre Group

अस्मिता थिएटर अपनी एक अलग दुनिया है।ये एक अद्भुत परिवार है,एक ऐसा परिवार जो एक दूसरे के लिए तो दिन रात खड़ा ही है,दूसरों की मदद के लिए भी सबसे आगे है..न जाने कितनी बार मैंने देखा कि अस्मिता के सदस्य कभी किसी की मदद के लिए रक्तदान करने तो कभी किसी मोहल्ले-बस्ती की सफाई में श्रमदान करने निकल पड़ते हैं।एक एसएमएस एक-एक मोबाइल से न जाने कहां कहां पहुंच जाता है।...दिल्ली की ये सड़के उन रातों को जूतों के निशानों को अपने ज़ेहन से मिटा नहीं पाई हैं,जब अस्मिता थिएटर को इसी दिल्ली ने नाटक करने से प्रतिबंधित कर दिया था।अरविंद सर  उस दौर में हर रात मंडी हाउस से शाहदरा अपने घर तक पैदल जाया करते थे और शायद वो ही न झुकने की ज़िद उनके अंदर आज भी कूट कूट कर भरी है..