आज हमारे देश में एक ओर पिछले 5 सालों में 1.5 laakh शराब के ठेके खोले गए तो वहीँ दूसरी ओर.....150 library भी सरकार ने नहीं खोली.इसका मतलब तो ये है की सरकार चाहती ही नहीं की लोग पढ़े लिखे. वो तो चाहती है सिर्फ शराब के नशे में पड़े रहें ओर कोई सवाल न करे........पर अब समय आ गया है अपनी प्राथमिकताओं(priorty) को समजने का की हमे क्या चाईए "मदिरालय या पुस्त्कालये".अगर आज हमने ये नहीं सोचा तो कल हमारे आने वाली पीढ़ी के हाथों में किताबों की जगह शराब की बोतलें होंगी.
No comments:
Post a Comment