ऋषिकेश गंगा घाट पे पहली बार कुछ लोगो को काले कुर्ते पहने केह्ते पाया "आओ आओ नाटक देखो"....कुछ समझ नही आया... फिर देखा एक दाढ़ी वाला आदमी चेहरे पे जिसके एक अजीब सी चमक थी.....एक शान्ति थी... एक क्रांति थी.... गहरा आत्मविश्वास था.... क्रोध था...और साथ थे जोशिये युवा जो भीड़ से अलग थे......इन सभी के चेहरे पे गंगा के पानी से ज्यादा चमक थी......और गंगा से कहीं ज्यादा बहाव था......और उनका प्रतिनिधि ...उनका गुरु मुझे अपने आप में एक संघ्रालय सा दिख रहा था ...नहीं वो एक संस्थान था .....
मैं समझ ना सका ...शायद वो साधु था ... या कोई क्रांतिकारी ...समाज सेवक.. या शायद एक कलाकार ......वो जो भी थे एक नेक इरादे से अपने साथियों को ले निकला था...वे थे श्री अरविंद गौर जी.....जिन्हें दिल्ली का कहना ग़लत होगा क्योंकि वो पूरे देश की आत्मा कि सच्ची आवाज़ हैं अंततः वे दिल्ली मुंबई या इंदौर से नही बल्कि पूरे भारत से हैं....
और उनके साथ हैं उनके शिष्य ,उनके बच्चे ,उनके साथी ...... वे सब अस्मिता ग्रुप से हैं और भ्रष्टाचार के खिलाफ नुक्कड़ नाटक कर रहें हैं..... हम सबके दिल कि बात बेबाकी से खुलेआम रख रहें हैं.....
चाहे वो श्री अरविंद गौर हों या उनके शिष्य सभी के सभी एक बहुत आसान ज़िंदगी जी सकते हैं... उन्हें कोई ज़रूरत नही सड़कों पे उतर आने की...वे ना तो फिल्मों में एक्टर बनना चाहते हैं ..ना ही प्रसिद्धि लूटना चाहते हैं....वे सिर्फ़ एक आवाज़ होना चाहते हैं.... वे ना ही किसी राज्नितिक पार्टी से ताल्लुक रखते हैं ना ही किसी कुर्सी की आशा ...... वे सिर्फ़ और सिर्फ़ पूरे दिल से वो करते हैं जो हर युवा को करना चाहिए ..... ऐसे अस्मिता को शत शत नमन..... ऐसे श्री अरविंद गौर को शत शत नमन....
इस जन्म में इन सभी से मिलना हुआ ....मेरा जीवन सफल हुआ......
अस्मिता एक थीयेटर ग्रुप नही है.. वो एक ऐसा संस्थान हैं जो एक्टर नही बनता बल्कि इंसान बनाता है.